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Wednesday, December 12, 2012

गूंगा गांव कैसे कहे



सिर्फ लटकी है तस्‍वीर
गांधी की एक कील से
बैठा हुआ झोंपड़े मेंे
बुन रहा था सपने
खाकी वर्दी में भेडि़या
उठा ले गया मेमने
गूंगा गांव कैसे कहे
व्‍यथा-कथा तफसील से।
पाले अकाल का मारा
लुटा-पिटा किसान
खटता रहा मजूरी को
जानी न तनिक मुस्‍कान
खेल बिके मांगते न्‍याय
मुन्सिफ और वकील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्‍यथा-कथा तफसील से।
सियारों भेडि़यों का वह
गरीब बन गया चारा
रपट लिखाने थाने में
संझा सा गया बेचरा
रतजगा कर लौटा सुबह
थाने और तहसील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्‍यथा-कथा तफसील से।
दीन-ईमान है केवल
अब तो नानी के किस्‍से
दाना-पानी सब रहा
गिद्दों-चीलों के हिस्‍से
घोंसले में रखा है मांस
दम किसमें कि मांगे चील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्‍यथा-कथा तफसील से।
सिर्फ लटकी है तस्‍वीर
गांधी की एक कील से।।

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4 comments:

  1. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा 14/12/12,कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है

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  2. समसामयिक और दमदार रचना |

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