सिर्फ लटकी है तस्वीर
गांधी की एक कील से
बैठा हुआ झोंपड़े मेंे
बुन रहा था सपने
खाकी वर्दी में भेडि़या
उठा ले गया मेमने
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
पाले अकाल का मारा
लुटा-पिटा किसान
खटता रहा मजूरी को
जानी न तनिक मुस्कान
खेल बिके मांगते न्याय
मुन्सिफ और वकील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
सियारों भेडि़यों का वह
गरीब बन गया चारा
रपट लिखाने थाने में
संझा सा गया बेचरा
रतजगा कर लौटा सुबह
थाने और तहसील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
दीन-ईमान है केवल
अब तो नानी के किस्से
दाना-पानी सब रहा
गिद्दों-चीलों के हिस्से
घोंसले में रखा है मांस
दम किसमें कि मांगे चील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
सिर्फ लटकी है तस्वीर
गांधी
की एक कील से।।
सादर निमंत्रण,
ReplyDeleteअपना बेहतरीन ब्लॉग हिंदी चिट्ठा संकलक में शामिल करें
प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा 14/12/12,कल के चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
ReplyDeleteसमसामयिक और दमदार रचना |
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