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Saturday, August 11, 2012

पत्‍तों से प्रात झरे


कोलाहल से दूर
बैठ हम वैसी बात करें
पूरी रात करें।

बहुत पी चुके
क्‍लोरीनेटिड जल
कडुआ गए शब्‍द
प्रणय गीत के,
गर्भवती पीड़ाओं की भीड़ में
भटग गए हैं पांव प्रीत के।

टीनापोल घुले व्‍यवहारों से,
दूर चलें, जहां जलजात तिरें,
पत्‍तों से प्रात झरे।

न अब गुलाबी नशा
आंखों में -
छिपकली से संदेह पलते हैं,
भिटियारिनों से दीवारों पर
चिपके पोस्‍टर दृष्टि छलते।

प्‍यारे नल छोड़
सरिता-तट चलें
हम-तुम अंजुलित साथ-साथ भरें
फिर निखरें।
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