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Monday, July 23, 2012

शिशिर गीत



प्राण ! रूपवंती यह शिशिर की रात है।

चल रहा शिथिल-मन्‍द-भीना वातास है,
जरा धीरे उठाना ज्‍योति का आंचल,
बुझ न जाए कहीं रूप का दीपक सलोना,
उड़ रहा शिखा पर यह पतंगा पागल।
लो के अधर पर कम्‍पती मीठ बात है।
प्राण ! रूपवंती यह शिशिर की रात है।।

आकाश वीणा की रश्मियों के तार,
रो उठे हों ज्‍योंे संगीत झन्‍कार में,
चम्‍पे सी अंगुलियों का आघात पा,
गीत के हंस आ रहे तुम तक अभिसार में।
ज्‍योत्‍सना की लहर धुली, नीरजा शान्‍त है।
प्राण ! रूपवंती यह शिशिर की रात है।।

रूप का कुम्‍कुम यह नीरजा की राह में,
ओ कंचुकी की ओट से उमंगता यौवन,
प्राण ! क्‍या करने को करता विवश है,
स्‍वपन के जाम पी हो रहे चंचल नयन।
कर गुजरने को है क्‍या, यह अज्ञात है।
प्राण ! रूपवंती यह शिशिर की रात है।।

प्राण ! क्‍या, लो मंच ही पूरा बदल गया,
कौन खूबियों के साथ परदा उठाया,
कम से हटकर करधनी लौट रही,
वेदना क्‍या बताऊं स्‍पर्श ने मेरे रूलाया।
जीत मेरी, तुम्‍हारी हार से मात है।
प्राण ! रूपवंती यह शिशिर की रात है।।
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