सर्वाधिकार सुरक्षित

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

Click here for Myspace Layouts

Saturday, July 7, 2012

कविता



बन्‍धु रे !
कविता
रोटी नहीं जो
भूख से बिलखते
लोगों का पेट भर सके।

जो आधे पेट खट-खट कर
नंगे बदन, पसीने से लथपथ
खून सींच-सींच कर
फसल उगाते हैं।
कविता तो उन
मेहनतकश लोगों का
गीत है,
प्रेरणा है,
आगे बढ़ने की शक्ति है
जिसकी लय पर
मैं, तुम, वह
फसल की रक्षा के लिए

'गोफिया'

हाथ में उठाते हैं।

-------