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Thursday, December 20, 2012

गाना है मंगल नव-विहाग




अब तो
नीम-नींद से जाग
श्रम-शिव!
जाग जाग रे जाग।

गहन अंधकार की कलाई
तू नहीं तो कौन तोड़ेगा?
छल-कपट द्वेष-ईर्ष्‍या – घट
तू नहीं तो कौन फोड़ेगा?

छोड़ अब
श्‍मशानी-वैराग्‍य
चिलम की
चेता रे तू आग।

तेरी कामधेनू-फसलों का
नीर-क्षीर पी रहे सपोले
नहीं समय यहां किसी को
देख तो जन के फफोले।

यों न व्‍यर्थ
कोसता रह भाग
छू ले
नभ लगा के छलांग।

आक्रांत संगीत-शेर में
गुम हुए अलगोजे के स्‍वर
तेरे सपनों के गांव-छांव
चंदन-बन आ बसे विषधर।

तुमको ही
कील कर ये नाग
गाना है
मंगल नव-विहाग।
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