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Wednesday, July 11, 2012

फिजूल तेरा दु:खी होना

फिजूल
तेरा दु:खी होना
कि शरीर से
एक-एक बूंद खून निचोड़ कर
पैदा की फसलें,
भूख से
पपड़ाए होठों पर
चुटकी भर
बसन्‍ती-धूप नहीं धर पाई।
फिजूल
तेरा पछताना
कि क्‍यों
फबुनाए साहूकार की
मक्‍कार मुस्‍कान के
स्‍वर्ण-मारीची आश्‍वासन में
तू
सिर झुकाए
सलाम में
कमान होता गया।
फिजूल
तेरा सोचना
कि मोटी खाल वाले
ये शिखंडी
तेरे सूखे ठूंठ को
दिल्‍ली से खून ला कर
सरसब्‍ज कर पाएंगे ?

बन्‍धु रे !
रीढ़ की हड्डी सीधी कर
'तंत्र' को 'लोक' का अर्थ समझा,
तब कहीं
तेरा पुरुषार्थ
सार्थक होगा।
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