सिर्फ लटकी है तस्वीर
गांधी की एक कील से
बैठा हुआ झोंपड़े मेंे
बुन रहा था सपने
खाकी वर्दी में भेडि़या
उठा ले गया मेमने
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
पाले अकाल का मारा
लुटा-पिटा किसान
खटता रहा मजूरी को
जानी न तनिक मुस्कान
खेल बिके मांगते न्याय
मुन्सिफ और वकील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
सियारों भेडि़यों का वह
गरीब बन गया चारा
रपट लिखाने थाने में
संझा सा गया बेचरा
रतजगा कर लौटा सुबह
थाने और तहसील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
दीन-ईमान है केवल
अब तो नानी के किस्से
दाना-पानी सब रहा
गिद्दों-चीलों के हिस्से
घोंसले में रखा है मांस
दम किसमें कि मांगे चील से
गूंगा गांव कैसे कहे
व्यथा-कथा तफसील से।
सिर्फ लटकी है तस्वीर
गांधी
की एक कील से।।