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Tuesday, September 25, 2012

भूख



बन्‍धु रे!
सड़कों,
गली-कूचों,
झुग्‍गी-झोंपडि़यों
उग आती है
सूरज डूबने के साथ
मच्‍छरों सी भिनभिनाती
जिस्‍म फरोशों की
भीड़
बू सूंघती
जिन्‍दा गोश्‍त की
और
बिकने लगती है
भूख।
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