पहाड़ से उतर
पगडंडी
गांव से शहर तक जाते-जाते
सड़क बन गई।
शहर की शुभ्रोज्ज्वल
ऊँचाइयों की
अंधेरी तलहटी में
महसूस किया
कि वह सड़क
जो मुझे और तुम्हें
मंजिल तक ले जाती है
हमारे भीतर ही
कहीं गुम हो गई है।
अब
हम-तुम
न उसे सड़क ही कह सकते हैं
और न पगडंडी ही,
जो कुछ भी
हमारी अन्तरंगता हो सकती थी
वह हम पीछे छोड़ आए
और हर कोई
लड़ रहा है
पहाड़ से।
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