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Monday, November 26, 2012

व्‍यवहारों को क्‍या हो गया


मुरझा गए सदाबहार, चिनारों को क्‍या हो गया?
खिंजा में बदल गई, यारों! बहारों को क्‍या हो गया?
शकुनी शतरंजी बिसात, सियाती उलटबासियां-
प्रदूषित इन सत्‍ता के गलियारों को क्‍या हो गया?
नाज़ था हमको जिस यारी पे क्‍यूं निगाहें फेरली,
गरदिशे लम्‍हों में मेरे यारों को क्‍या हो गया?
मुँह में राम बगल में छुरी कि चेहरे पे चेहरे,
वो खुशबू, वो प्‍यार कहां, व्‍यवहारों को क्‍या हो गया?
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कोई बात तो हो

ऐसे में कैसे करें बात, कोई बात तो हो।
बीते तो कैसे बीते रात, कोई बात तो हो।।
उमस भरी गुमसुम-सी ठहरी कहीं हवा है,
लरजे तो सही कि पीपल-पात, कोई बात तो हो।
दूरियां भी नाप लेंगे हम डगमगाते पांव से,
अधर हो धरी यदि सौगात, कोई बात तो हो।
आंसुओं से करलें हम सुलह भी यदि हाथ में हो-
किसी के मेहन्‍दी वाले हाथ, कोई बात तो हो।
बादल हो या बहकाहुआ शराबी-सा मौसम हो,
रिमझिम सरगम हो कि बरसात, कोई बात तो हो।
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किसी कारण वश इससे आगे पोस्‍ट डिलीट होने के कारण पुन: अपलोड कर रहा हूं। आशा करता हूं कि पूर्व की भांति यथा सहयोग प्रदान करेंगे।