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Wednesday, August 15, 2012

शरद् किरण



रंगराई पहाडि़यों की अन्‍य गुफाओं से
उतर शरद् किरण
धरे गोरे चरण।

उतर रहे हंस
लिपे पुते आंगनों में,
बंध रहे अक्षर
अर्थ के सम्‍मोहनों में,

तन-मन-प्राण मुदित पावन ऋचाओं से
करता ज्‍यों मंत्रोच्‍चारण
मुखर रेत करण-कण।


बांसुरी प्रतीक्षा
रूप-रंग-रस-गन्‍ध धुरली,
खग-वनिताएं
खेल पंख उड़ चली,


पुर गया चौक
आढ़ी-तिरछी रेखओं से,
रंगों का अभिसिंचन
छवियों का आमंन्‍त्रण


रंगराई पहाडियों की अन्‍य गुफाओं से
उतर शरद् किरण

धरे गोरे चरण।

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