धरती पर बिछ गए हैं,
दूब के हरे गलीचे,
तन गए आकाश में,
बादलों के शामियाने।
पांव में
मौसम के बूंदों की
पायल बजती,
छांव में
प्रीत बावरी, कि
पिव-पिव पुकारती।
तन-मन-प्राण
हरियाये,
ये यादों के बागीचे,
धर गई पुरवाई इक गीला,
छन्द सिरहाने।
गांव में
यहां डाल पर गदराये कच्चे
आम,
नाँव में
अधरों की, आ बैठ
जाता एक नाम।
क्षुधा-सांवरी यह
भरे
कलश उरोजों पे
सींचे,
आसाढ़ क्वांरे घन,
छज्जों पर लगे उतराने।
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