देखि देखि के
बौराए आमन को
फूली पीनी सरसों को
हरियल पौटाए गेहूंन की
मुस्काती बालिन को
फगुनायी पौन-सी
मटर के फूलन-सी
दूधिया देह लिए
अल्हड़-यौवना
गदरायी उमरिया के उभारन को
कंदुक-सी उठालती/बौरात/इतरात फिरे
खेतन की मेड़न पे
धूल्या की बेटी
गिन-गिन महीने/बरस
हारि गई/सोलह बरस
’रह्यो अब तक
जीवन हिकतनो अलौनो
शायद/बापू/या बरस
गणगोरया पे कर दे
गौनो ?’
मगर
आठ लड़के/लड़किन की जननी/महरिया के मर्ज से
रिश्ते-नाते/ब्याह-सगाई/जनम-मरन
महाजन क कर्ज से
आमद से ज्यादा खर्च से
तो कभी अकाल से/बेमौसम बरसे सावन/औलों की मार से
बिखरता धूल्या
उमगाई बिटिया की
आंखिन में पढि के मूक भाषा
आठों पहर रहिन
खोया-खोया/विदेह-सा/बतियाता खुद से
’फटी चदरिया/छोटी
पांव न पड़े पूरे
गरीब की किस्मत
खोटो सोनो
बिटिया !
या बरस
कैसे
हो गोनो ?’
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