सर्वाधिकार सुरक्षित

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

Click here for Myspace Layouts

Sunday, July 15, 2012

कड़वी यादें



फिर से सीमान्‍त पर
बे मौसम
रेत गरमाने लगी है
फिर से आदमी के
कच्‍चे गोश्‍त की तलाश में
उड़ने लगी है
आकाश में चीलें।
सुना है,
कुछ उन्‍मादी लोग
मुट्ठियों में बारूद भर
केसरिया हवाओं में उछाल रहे है।
फिर से,
फूलों के गांव में
केसर-क्‍यारियों में
बिखरे मकरन्‍द को खाने
दौड़ी आ रही है
चीटियां।
दोस्‍त
अक्‍सर ऐसा होता है
किस अनचाहा युद्ध-बोध
मेरी चेतना को सौंप जाता है
पिछली नीम सी कड़वी यादें।
-------