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Monday, October 8, 2012

मेरे बच्‍चों !




आज
जब हाथ को हाथ नहीं सुहाता
उजालों पर कर रहे हैं
अंधेरे
प्रहार पर प्रहार
योजनाबद्ध सलीके से
सूरज, चांद-सितारों,
परियों के सपनों से
रिक्‍त किया जा रहा है।

तुम्‍हारा
आकश
और
डूबते जा रहे हो
कहीं दूर
गहरे और गहरे में
जैसे
कोई अवरूद्ध कर रहा हो
मां के मधुर कंठ को,
मेरे बच्‍चों !

मां की लोरी से बढ़ कर
कोई आशीर्वाद नहीं
मां से बढ़ कर
कोई देव प्रतिमा नहीं
कोई मजहब नहीं
तुम्‍हें
उन्‍मत्‍त प्रभंजन के होंठ चूम
अन्‍धकार को वल्‍लरी पर
अंकुरित हो खिलना है
सूर्य फूल-सा।
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