सर्वाधिकार सुरक्षित

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

Click here for Myspace Layouts

Wednesday, June 6, 2012

निकल छन्‍दों की कैद से

निकल छन्‍दों की कैद से
गीत
चाहता है नए अर्थ में जीना।
बूड़ी उपमाओं के
अनुसरण का
नहीं चाहता अंकुश
अक्षर
व्‍याकरण का
अवसरवादी अलंकारित
पंक्तियां
है इनकी कुंठित लय-वीणा।
नहीं मांगता तन
स्‍वर्ण स्‍याही का
प्रतीक यह
प्रगीत
संबल हर राही का
शीर्षकों के कोलाहल से
अलग-सा
अपने पानी का स्‍वनाम नगीना।
-----