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Sunday, October 14, 2012

तीन क्षणिकाएं

समाजवाद.....

उनको मुटा गया सुख

आ गया

कुर्सियों का स्‍वाद,

इसलिए उन्‍होंने

अपनों में बांट लिया समाजवाद।

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चतुर बन्‍दे.....

बिना किस श्रम

खोले आश्रम

मांग-मांग कर चन्‍दे

बड़े हो गए

बापू के बन्‍दे।

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अभाव.....

चीलों से मंडराते लोग

मारते हैं छापे

गांव-गांव

रोटी की तलाश में

हर मुंडेर पर

करता है कौआ

कांव-कांव।

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