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Tuesday, May 29, 2012

मतदाता, राजनीति, चुनाव और वोट

1.
­बल्‍ब की
पाण्‍डु
रोशनी को
चर लिया
कांच के रंग-महल की
मरक्राइज्‍ड गाय ने।
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2.
राजनीति
एक टुकडा पान का
थोडा-सा
सफेद चूना
शांति सूचक,
लाल-कत्‍था
बलिदान का सूचक
थूक दिया जाता है
शौचालयों में यहां-वहां,
रह जाते हैं
सिर्फ
मूंह में
सुपारी के टुकडे
दाँत बजाने के लिए।
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3.
सुबह आफीस जाते
खरीदी.......
और
शाम को लौटते
फैंक दी गई.......
खाली माचिस की
डिबिया
यह है मतदाता।
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4.
भारत की आत्‍मा है
ये गाँव
जातिवाद के विषधर से दंशित
जी रहे लिए
जहरीला तनाव
और भी ज्‍यादा उगल जाते हैं
जहर
ये चुनाव।
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5.
यह सोचना
व्‍यर्थ्‍ हो गया कि अब फिर
मेरा 'वोट'
अपना मुखडा नहीं बदल लेगा ........?
क्‍योंकि इसके
आचरण का पीताम्‍बर
तार-तार हो चुका है।
सत्‍ता के भूखे
कौरवों की सभा में
द्रौपदी के शल को बचने में असफल
स्‍वयं दु:शासन के हाथों
निवर्सन हो गया
और भयाक्रांत द्रौपदी
शंकित है।
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