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Wednesday, July 4, 2012

सुमन खिलने दो

बलात्‍कार
ढाकाजनी
अकालीदल असंतोष
असम बंद
सुबह की चाय के साथ
यही सब तो पीया है;
यह सुबह
और दिन से अधिक गमगीन है
कोई नहीं ताजगी
कोई नहीं नयापन
कोई नहीं.........कोई नहीं........
वही बासीपन
बस यही लगता है
बसंत के आने से पहिले ही
कलियों को नोच लिया
चुना नहीं,
धुंए को गाली देने वालों ने
आक्‍सीजन को भर लिया
सिलेण्‍डरों में
और
कार्बन-डाई-आक्‍साइड उगल दिया उपवन
हर एक पौधे का दम घुट रहा है
बेजार है
एक तरन्‍नुम-सी जिन्‍दगी
बासन्‍ती बयार की
लय, गीत, संगीत
सब कुछ डस लिया
गुनाहों के अंधेरों ने
उमस में जीने को
विवश कर दिया
इस पूरी पीढ़ी को
पूरी सदी को।
ओ, मेरे रहबर।
सूर्य को
रोको मत
सुबह को उतरने दो
गीता, कुरान, बाइबिल
हर प्रार्थना को व्‍यापक होने दो
शब्‍द को घनत्‍व दो
भारत-माँ की पूजा के
सुमन खिलने दो।
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