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Friday, August 24, 2012

सूखा गांव



कहां ऋतु – मधुमास
रंभाते पशुओं का सूखा यह गांव।

अंचरा न बांधे
गंध फगुना-चैत
दृष्टियों में चुभे,
भूख पेट खेत।

यहां – वहां बबूल
थामे खड़े शूल
दीखती न फगुनाएं नीम की छांव।

कहां ग्राम- बाला
पागल प्राण करे,
कोकिला के गीत
कहां महुआ झरे।

हरियाये न बेंत
आंखों उड़े रेत
मेंहदी रचायी न धरती के पांव।

झीलों के दर्पन
निहारती न प्रीत,
टूटा झरनों का
पनघटों का गीत।

भींचे है अकाल

फूलों की मशाल

खेल-खलिहानों में पल रहे अभाव।

रंभाते पशुओं का सूखा यह गांव।।

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