वक्त–बेवक्त
दर्द को
पसीने के घोल में
घोल-घोल कर
आशा और विश्वास की गंध से मिश्रित
जोगिया, बैंगनी, हरित, पीत रंगों के फूल
मेहनत की सुई से
खेत की हरियल सुनरिया पर
टांक दिए
और प्रकृति ने
बड़े दुलार से
रात के सन्नाटे में
ओस की बूंदों से
रंगों को और गहरा, चटक कर दिया
इसे मौसम के डाकिए ने
पीत पाती थमा कर
नाम दे दिया
फागुन का।