हम अँधेरों में
टटोलते थे
सूरज
उगने के साथ
टूट गया
एक अधूरा स्वप्न
जगे तो
चाय के साथ
पी लिया
झूठ
औढ़ लिया
स्वार्थ की चादर को
जतन से
आंखों पर पहल लिया
सुनहरी फ्रेम वाला
भ्रम का काला चश्मा
चुनने तो थे मोती
बीनने लगे
घोंघे
सागर पर उगना था बनकर सेतु
होना था पार
जनगण को
डुबो दिया
सब गलत हो गया।