हल्दिया सरसों लहके,
फाल्गुनी बयार में।
वन-उपवन, खेत गमके,
फाल्गुनी बयार में।।
रंग-बिरंगा आज फिर
हुआ मन का मधुबन,
धूलि चंदन-सीर महके, फाल्गुनी बयार में।
अनायास ही जग उठी, अन्तस में लालसा,
लाल टेसू जब दहके, फाल्गुनी बयार में।
बांध सुमनों की वेणी, पहने सन-बिच्छिया,
ग्राम्य यौवना ठुमके, फाल्गुनी बयार में।
आए दिन उमंगों के, गणगौर पूजन के,
कि रूप प्रिया का दमके, फाल्गुनी बयार में।