आंखों पर
लगा अँधेरे चश्में
तलाशते हैं रोशनी।
गुजरते हैं
पकड़ अंगुली गुनाह के
तंग रास्तों से,
करते हैं दोस्ती
पहन कर खद्दर
एैयाशी के गुमाश्तों से,
करते हैं बातें चरित्र की
मारते हैं
लड़कियों को को कुहनी।
तलाशते हैं
जन्म पर विषमताओं को
समाधान
भाषण में,
बन्द है पुस्तकों में
गाँधी का दर्शन
कहां है आचरण में ?
कौन पढ़े-गुने
कुर्सियों की चिन्ता में
जीते हैं
सुरा-मोहिनी।
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