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Wednesday, August 29, 2012

फूलों की बहारों को रोता है बुलबुल


शबे-महताब से रोशन है उनका मुआ दिल।
बैठे हैं हम यों करके चिराग अपने गुल।।

मुफलिसी में उगाते हम आंसुओं की सफल,
सुरा-साकी से पुरनूर है उनकी महफिल।

लहू से बनाया जिन्‍होंने अपना राज-पथ,
चल के उस पे कुछ सिरफिर पा गए मंजिल ।

हाल पे अवाम के उन्‍हें नहीं कुछ मलाल,
रहबर हमारे वो पड़े हैं हो के गाफिल ।

खुशबू न नूर गुलाबों का अब अल्‍फाज में,
सियासत की मुलाजिम हो गई कि आज गजल ।

बहारें कहां, चमन कैसे कि कफस में बंद,
फूलों की बहारों को रोता है बुलबुल ।
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