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Tuesday, July 31, 2012

सूर्यमुखी हँसी

रूप का दीप जला
प्राण ! तुमने घर आंगन उजियार दिया।

आई नूपुर बांध पांव में,
ज्‍यों बिजली प्रतीक्षित गांव में,
जूड़े गूंथ उजले -
फूल कांस के, सुधियों ने श्रृंगार किया ।

घर आया ज्‍यों क्‍वार का धान,
ऐसी तुम्‍हारी मुस्‍कान,
दुहरा नयन- काजल,
आधी रात, दर्पण ने मनुहार दिया ।

उजलाई गहरी छायाएं,
टूटी ताड़ सी प्रतीक्षाएं,
सूर्यमुखी हंसी ने,
धुंधली रेखाओं को आकार दिया।

रूप का दीप जला
प्राण ! तुम ने घर-आंगन उजियार दिया
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Monday, July 30, 2012

बुला गए बदरा



बिखर या कजरा,
लुभा गए बदरा।

छत पर खड़ी निखारती रही डगरिया,
तुम न आए पिया, थक गई नजरिया ।

बहा गए बदरा,
पलकों का कजरा ।

सकुच सकुच खोली गीली कंचुकिया,
इतने में मुसकाई शोख बिजुरिया ।

दहक गए बदरा,
अंग अंग पियरा ।

कि बैरिन बयार खुड़काए कि‍वडि़या,
आहट पर उचट उचट जाए निंदिया ।

पहिनाए बदरा,
मोती का गजरा ।

डसती एकाकी सावन की रतियां,
आओ बतियायें हम मन की बतियां ।

उमड़ उमड़ गहरा,
बुला गए बदरा ।

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Sunday, July 29, 2012

तुम मिले ऐसे.....



तुम मिले ऐसे
द्वार पर जैसे कि वीरान हवेली के,
खिल गए हों सुमन महकती चमेली के ।
मिल गई गन्‍ध जैसे भटकते पवन को,
देव दर्शन मिला हो कि मेरे नयन को।

तुम मिले ऐसे
हो गई एक देह चूनर रंग बसंती,
रच गए गहरे रंग प्रणय हथेली के ।

आकाश को मिल गई पूनम क्‍वार की
लगी बजने वीणा मधुर मनुहार की ।
तुम मिले ऐसे
छन्‍द से उतरे कि गीत पूर्ण हो गया,
खुल गए अर्थ अबूझ तरूण पहेली के ।
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Saturday, July 28, 2012

तुम्‍हारी श्‍यामल अलकों ने...



जैसे तुम्‍हारी,
श्‍यामल अलकों ने,
तान दिया पाल, छत पर आकाश के।

झर रहे कि शब्‍द
बूंद-बूंद गीत के,
उभर रहे अर्थ
दूर्वा से प्रीत के,
शरमीली नत श्‍याम-
नील पलकों में,
झूल रहे प्रतिबिंब, आकुल प्‍यास के ।

फूल रही कि
माटी में साधनाएं,
नाचते मोरों-सी
ठुमकें कामनाएं,
जुड़ रहे सन्‍दर्भ
कि नभ से धरा के
ठहरते न पांव भीगी, वातास के ।

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Friday, July 27, 2012

तपन दे गए उषा के चन्‍दन-क्षण

दृष्टि-पन्‍थ से
हो गए ओझल, तुम्‍हारे चरण ।

भर गई चिकोटी निगोड़ी भोर,
भीग गई कजरारी नयन कोर,
पलकां में बन्‍द धीरज छूट गया,
सुधियों का सन्‍दर्भ टूट गया ।
फैंक किरण-शर
दिग्-दिगन्‍त से
दरक दिए सब, सपवनों के दर्पण,
दृष्टि-पन्‍थ से
हो गए ओझल, तुम्‍हारे चरण।

बिसर गए पूजा के नेम-नियम,
टूट गया चुप शब्‍दों का संयम,
कीलित मर्यादाएं हिल गईं,
छाल पपड़ाए घाव की छिल गई ।
बन्‍ध्‍या कोख
दूर कन्‍त से
तपन दे गए,
उषा के चन्‍दन-क्षण,
द़ष्टि पन्‍थ से
हो गए ओझल, तुम्‍हारे चरण।
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Thursday, July 26, 2012

सूखा मधुबन

आंखों के मथुरा-वृन्‍दावन
उग आए हैं बूढ़े बबूल ।
चुक गया दूध-दही-माखन,
री‍ती मटकी है, चुन ग्‍वालिन,
तलाशते संशयों के कंस-
यशोदा का घर-द्वार आँगन ।
न जाने कहाँ मुरली-मोहन,
उदास है कि यमुना का कूल।
शंकित हैं मित्रता निर्धन की,
स्‍याह हुई सुधियां बचपन की,
ठगा-ठगा सा खड़ा सुदामा,
ख्डि़की तक न खुलती सदन की ।
संकुचित मन हो गया उपवन,
सूख गए सन्‍दर्भों के फूल ।
मौसम में बुझे-बुझे पलाश,
बीमार हल्दिया-अमलतास,
लंगड़ा पथ है अन्‍धा गांव -
चुका जहां आंखों का उजास ।
कोडि़या गए रंगीन स्‍वप्‍न,
चन्‍दनी-इच्‍छाएं हुई धूल ।
धर्म, कि राजनीति में बदला,
रहा न मनुज कर्म का उजला,
निगल बेगुनाह मछलियां -
प्रतिष्ठित हुआ पद पर बगुला ।
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Wednesday, July 25, 2012

बूंदों की बाँसुरी छेड़ों



घिर आएंगे नभ में बादल,
जो हठीली अलकें खोल दो ! 

प्राण दग्‍ध कण्‍ठ में आ अटके,
और तृषित मृग मरू में भटके,
जलाओ धन बीच फुलझडि़यां,
सहसा ही मतवाली झडि़यां !

आषाढ़ मेघ पुलक से बरसें,
नेह से तन-मन-प्राण परसें,
निखरे रूप और काजल का
जो नशीली पलकें खोल दो !
घिर आएंगे नभ में बादल,
जो हठीली अलकें खोल दो ! 

करो शीष वरद जलधर छांह,
गही शीतल पुरवा की बांह,
दीखे चहुँ ओर सावन हरा,
वरदानों से हो कलश भरा !

प्‍यार नहीं अब तुम यू बांधो,
और रवि-रश्मि-तीर साधो,
बूंदों की बाँसुरी छेड़ तुम,
नव-पुलक से रस-रंग घोल दो !
घिर आएंगे नभ में बादल,
जो हठीली अलकें खोल दो !

सहकर ताप बिलखी-बिसूरी,
मन की इच्‍छाएं-कर्पूरी,
नभ के बादल अपने-से लगे,
प्राणों में प्रणयति-गीत जगे !

गूँजा वन-उपवन पिक-स्‍वर से,
आलिंगन को चपला तरसे,
ओ, वरूणा ! अनुबन्‍ध जलीली
खोल अधर मदिर बोल दो !
घिर आएंगे नभ में बादल,
जो हठीली अलकें खोल दो !
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