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Friday, July 20, 2012

स्‍नेहिल स्‍मृति



दीप जलाए सुधियों के द्वार खड़ी अकेली तुम-सी भोली
यह चम्‍बई सांझ तुम्‍हारे लहराते श्‍यामल कुन्‍तल-सी।।
क्षितिज अंगूरी-पल्‍लव थहिकत दिवस किरणों ने चूम लिए,
सौरभ के पर चंचल तुम्‍हारी श्‍वासों की केसर पिए।
अधर चूम कर मेरे उर तक रेख खींच दी चंचल-सी।
यह चम्‍बई सांझ तुम्‍हारे लहराते श्‍यामल कुन्‍तल-सी।।
रेशमी चुनरी ओढ़े रस-सिन्‍धु स्‍नात यह धवल रात,
उन्‍मत्‍त रजनी की गोद में पुलक से आपूरित पात-पात।

यह नव-नील कोमल छांह तुम्‍हारेमुख के सुषमा-जल सी।
यह चम्‍बई सांझ तुम्‍हारे लहराते श्‍यामल कुन्‍तल-सी।।
आमन्‍त्रण देता ठहर चन्‍दा को लहरों का मौन संगीत,
हर रोम-रोम में प्‍यार पुलक, अधरों पर स्‍पन्दित मधुर गीत।
दृष्टि-दूतिका उड़ी स्‍मृतियों के पार तुम्‍हारे अंचल सी।
यह चम्‍बई सांझ तुम्‍हारे लहराते श्‍यामल कुन्‍तल-सी।।

मिलन-द्वार प्राणों का सौरभ ले श्‍वासों का कपूर जल रहा,
तुम्‍हारी अर्चना में निरन्‍तर गीत का चांद गल रहा।
मौम-तन में पल रही रह-रह, फिर पिपासा ज्‍योति जल-सी।
यह चम्‍बई सांझ तुम्‍हारे लहराते श्‍यामल कुन्‍तल-सी।।
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