टूटे सपन की हिकरकिरी पथराती है आँखों में।
याद कोई भूली सी ग़ज़ल गाती है आँखों में।।
स्वप्न में हूँ या कि जागा हुआ, चलता न कुछ पता,
रूहे-दिल की तनहाई घुमड़ आती है आँखों में।
कमसिन डाल पे उतर के धूप जब पर सुखाती है,
पत्तों की पलक पे ओस जगमगाती है आँखों में।
घंटियां मंदिर की बजती तब संवलाई शाम में,
वो बिल्लौरी तस्वीर उभर आती है आँखों में।
हर दिन तीर्थ-सा लागे, हर पल-क्षण पूरनमासी,
मोहन की राधा जब से रास रचाती है आँखों में।
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