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Tuesday, August 21, 2012

बसंत की पाती

बसंत की पाती है
दूर्वा की स्‍लेट पर
फूल है जैसे लिखे, अक्षर किसी नाम के।


नगर-द्वार, जीवन में
फिर लौटी है मिठास,
अधरों औ आंखों से -
है छलकती मधु-प्‍यास ।

टेसू के लाल-लाल
रंग बसनों में मुदित
कोयल के बोलों पर, खुले अधर विराम के,
फूल है जैसे लिखे, अक्षर किसी नाम के ।


गीतों के पंख खुले
मकरन्‍दी छांहों में,
उदास मन झूलेगा
अमलतासी-बांहों में ।


कण-कण हो मुखरित सब-
नगर-गांव नाच रहा
उमंग है पांव में, आज बूढ़े ग्राम के ।

बसंत की पाती है दूर्वा की स्‍लेट पर
फूल है जैसे लिखे, अक्षर किसी नाम के।


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