शहतूती होठों से/रसियाते बोल
कहां तलाशूं
बोल सुआ बो।
श्ब्दों का व्यापार यहां
महाजनी संस्कृति है
पुरखों की भाषा यहां
गूंगी बहरी श्रुति है।
कड़ुवाए नैन-बैन/सम्मोहन
गुम हो गए
अलगोजे के बोल।
फूल, तितलियां, भौंरे,
गंध शिरीष रिझियाती
दूर तक कहीं नहीं
धानी चुनरिया लहराती।
बरगत कहे पीपल से
गांव की पीड़ा
बजते नहीं अब बधावे के ढोल।
शीश धरी भारी
कर्ज की गठरिया
पूर पड़ती नहीं
पांव बड़े, छोटी चदरिया।
श्रम बंधक है
उड़े तो कैसे
मुक्त गगन में पंख खोल
बन्द मन के पेट खोल
स्वर में मिश्री घोले
सबको राम-राम बोल
बोल सुआ बोल।
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