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Tuesday, December 25, 2012

मोह घर का




खजूर की लम्‍बी/म्‍यालें
लाचार है अब/बोझा ढोने में
छप्‍पर का।
दरख्‍त थे जो भी/छायादार
उखड़ गए-
पुश्‍तैनी जमीन से/लोगों के
पांव।
लरज़ते बोल/अलगोजे के
खो गए-
रूप-रस-गंध वाले
गांव।
शहतूती रिश्‍तों को
लील गया/जादू
शहर का।
पसीने में भीगी/छोटी-छोटी
खुशियों पर
मौसम ओले/बरसाए।
कुंआरी
मेहंदी वाली हथेली के
चटक रंग/धुधलाए।
ढह गया/भरभरा कर
मिट्टी की सौंधी गंध वाला/
मोह घर का।
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