खजूर की लम्बी/म्यालें
लाचार है अब/बोझा ढोने में
छप्पर का।
दरख्त थे जो भी/छायादार
उखड़ गए-
पुश्तैनी जमीन से/लोगों के
पांव।
लरज़ते बोल/अलगोजे के
खो गए-
रूप-रस-गंध वाले
गांव।
शहतूती रिश्तों को
लील गया/जादू
शहर का।
पसीने में भीगी/छोटी-छोटी
खुशियों पर
मौसम ओले/बरसाए।
कुंआरी
मेहंदी
वाली हथेली के
चटक
रंग/धुधलाए।
ढह
गया/भरभरा कर
मिट्टी
की सौंधी
गंध
वाला/मोह घर का।
-----
No comments:
Post a Comment