सर्वाधिकार सुरक्षित

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

Click here for Myspace Layouts

Wednesday, August 8, 2012

क्षण है श्रृंगार के



मन-विहग गाए,
यह उड़-उड़ जाए,
गन्‍ध जूड़े कसे, महके बयार के।
छू गए कौना-आन्‍तर द्वार के।।

रंगों की फुहार,
रंगों की पुकार,
बरजे क्‍वांरी याद को मन भार के।
कि आई यह उमर, यौवन उभार के।।

बसन्‍ती बोलियां,
फूल की डोलियां,
फागुन-पाहुन गाए गीत प्‍यार के।
शरद्-चिरिया उड़ी, पांखें पसार के।।

पांव लिपटे सपन,
नृत्‍य करते मगन,
शाख-शाख
से पिंकी-स्‍वर मनुहार के।
आए चढ़ कांधे, पवन कहार के।।

गौर रसवन्‍ती,
दुल्हिन जलवन्‍ती,
विरम रही नयन, आंसू संभार के।
पिया न आए यह, क्षण है श्रृंगार के।।
------

1 comment:

  1. क्या बात है जी....

    कुँवर जी,

    ReplyDelete