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Monday, August 6, 2012

कोई मीत न रूठे




ओ मेरे हमजोली,
खेलें ऑंख मिचौली।

सुधियों के पार चलें,
फागन के गले मिलें,
पल-पल मुस्‍कानों के
होठों पर समुन खिलें।

साथ साथ रंग भरें
सजी है रंगोली।
महके गजरे महके,
खनके कंगन खनके,
मदमाते से चंचल
बहके से दृग बहके।

कुहुक उठी कोयलिया,
मन में मिसरी घोली।
दृगों के तीर छूठे,
अनबोले घट फूटे,
भीगे-भीगे क्षण है
कोई मीत न रूठे।

अबीर गुलाल खेलें,
रंगों की है होली।
ओ मेरे हमलोजी
खेलें आंख मिलचोली।
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