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Saturday, July 21, 2012

अधर मौन क्‍यों रहते हैं ?




क्‍यों रूक-रूक जाती है मीठी बात गले तक आ-आ कर,
नयन परस्‍पर बोला करते, अधर मौन क्‍यों रहते है ?

उषा-सुकन सी मुस्‍कानें होठों पर नचती आती है,
लाज गुलाबी पंखुडि़यों सी, पलकें झपक क्‍यों जाती है ?
पीड़ा का क्‍यों भार उछलते उर क्‍यों स्‍पन्‍दन सहते है ?
नयन परस्‍पर बोला करते, अधर मौन क्‍यों रहते हैं ?

तुम्‍हीं, सब कहीं व्‍यक्‍त दृगों में, अपना रूप बसाकर,
प्‍यास बढ़ाते जाते जब तब, स्‍वप्‍नों में आ-आ कर,
स्‍वप्निल-उर्मिल प्रणय संदेसे, तट दूरी से कहते हैं,
नयन परस्‍पर बोला करते, अधर मौन क्‍यों रहते हैं ?

मिलता मधुप कली से गा-गा, चूम-चूम रस लेता है,
जलती दीप-शिखा में जल-जल, प्राण पतंगा देता है,
दो बूंद-बूंद बन हम प्रीत लहर पर, दूर-दूर क्‍यों बहते हैं ?
नयन परस्‍पर बोला करते, अधर मौन क्‍यों रहते हैं ?
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