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Tuesday, December 31, 2013

कहो नव वर्ष













ठिठुराति सर्दी
ठंडी चाय टूटा थमर्स
प्रकृति-पुरूष का होता
आस्‍था-विश्‍वास
खण्‍ड-खण्‍ड
हर पल याद मुझे
2013 का उत्‍तराखण्‍ड
भूकम्‍प–दंगों की त्रासदी
दे गया गतवर्ष
सदी की त्रासदी
महाकाल का ताण्‍डव नृत्‍य
अनिश्चित सियासती
गली के कुकृत्‍य
ओ। मेरे भारत
कैसा उत्‍कर्ष
पीत-पर्ण यहां-वहां
राग-द्वेष, द्वार-द्वार
खड़े प्रश्‍न अनेक
फैला आभिज्‍यात्‍य
अनाचार
आंसू से भीगा
गणतंत्र का हर्ष/
भद्र जनों का नाटक यहां
अभिवादन/अभिनन्‍दन
विषधरों से आतंकित
गंधायित यह चंन्‍दन-वन
छटेंगे क्‍या कभी
काले बादल /

कहो नव वर्ष ?

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