मेरे काव्य संग्रह
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Thursday, January 10, 2013
बाल की खाल
निकाल रहे थे, बाल की खाल,
है न कमाल।
पालते रहे थे, आस्तीन में सांप,
अभिजात्य है, लेकिन करते रहे,
पाप, पाप, महापाप
एक वो है, मां के सपूत,
सीमाओं पर कर रहे हैं
मां का ऊँचा भाल
एक ये है कि
निकाल रहे है बाल की खाल।
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