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Friday, October 5, 2012

मुट्ठी भर छांव



सुनो!
पतेल की टूटी छान वाले
गंवईया,
ये रेतीले टीले
तुम्‍हारी
पैबन्‍द लगी
अस्मिता से कह रहे हैं-
तुम
शहरों को तो बांटते हो
श्रम के मोती, 
अपनी 
पसीने की गंध से
रेत का
बांझपन
हरा करने को
बो दो
मुट्ठी भर छांव।

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