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Saturday, August 4, 2012

बादलों के शामियाने




धरती पर बिछ गए हैं,
दूब के हरे गलीचे,
तन गए आकाश में, बादलों के शामियाने।

पांव में
मौसम के बूंदों की पायल बजती,
छांव में
प्रीत बावरी, कि पिव-पिव पुकारती।

तन-मन-प्राण हरियाये,
ये यादों के बागीचे,
धर गई पुरवाई इक गीला, छन्‍द सिरहाने।

गांव में
यहां डाल पर गदराये कच्‍चे आम,
नाँव में
अधरों की, आ बैठ जाता एक नाम।

क्षुधा-सांवरी यह भरे
कलश उरोजों पे सींचे,
आसाढ़ क्‍वांरे घन, छज्‍जों पर लगे उतराने।
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3 comments:

  1. बहुत उम्दा

    ---शायद आपको पसंद आये---
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    ग़ज़लों के खिलते गुलाब

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  2. आपके ब्लॉग से CRTL+A करके सब स्लेक्ट और CRTL+C से कापी हो जाता है कृप्या तकनीक दृष्टा पर दी गयी नयी विधि प्रयोग करें।

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