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Wednesday, July 18, 2012

मेरे अमिट विश्‍वास हो


कंटकित हो मुस्‍कुराती नवल सुमनार्चित प्रशाखा,
हृदय उपवन में प्रफुल्लित वेदना के हास हो।

प्रगति प्रांगण में तुम्‍हीं,
मेरे अमिट विश्‍वास हो ।

मधुर अधरों पर सुशोभित मौन मन की मूक भाषा,
विरल भावों के श्रृंगारित दिवित आकाश हो।
चन्‍द्रबाला-सी उमर नीलाम्‍बरा मुकुलित कलेवर,
उर गगन में छिटक बरसाते सुधार विद्यु-हास हो।

प्रगति प्रांगण में तुम्‍हीं,
मेरे अमिट विश्‍वास हो।

मुक्‍त नभ की एक खगमाला, दिवंगत नीड़ हो तुम,
मंदिर छाया में प्रणय के गीतिमय नि:श्‍वास हो।
तुम नवोदित सुमन, मैं गुनगुन-गुनन्‍ की मधुर पुकार,
विश्‍व-वीणा पर निनादित स्‍वरित स्‍वप्‍नाकाश हो।

प्रगति प्रांगण में तुम्‍हीं,
मेरे अमिट विश्‍वास हो।
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