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Monday, July 30, 2012

बुला गए बदरा



बिखर या कजरा,
लुभा गए बदरा।

छत पर खड़ी निखारती रही डगरिया,
तुम न आए पिया, थक गई नजरिया ।

बहा गए बदरा,
पलकों का कजरा ।

सकुच सकुच खोली गीली कंचुकिया,
इतने में मुसकाई शोख बिजुरिया ।

दहक गए बदरा,
अंग अंग पियरा ।

कि बैरिन बयार खुड़काए कि‍वडि़या,
आहट पर उचट उचट जाए निंदिया ।

पहिनाए बदरा,
मोती का गजरा ।

डसती एकाकी सावन की रतियां,
आओ बतियायें हम मन की बतियां ।

उमड़ उमड़ गहरा,
बुला गए बदरा ।

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