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Wednesday, June 13, 2012

''मैं''


5.
कितनी छोटी है अंगुलियां,
छोटी है
परन्‍तु
सशरीर से जुड़ा
आदमी कितना बड़ा
जिन पर है खड़ा।
बात तो यह है अचरज की
आदमी हुआ है छोटे से बड़ा
फिर भी रहता है
छोटों से
हरदम अकड़ा,
''मैं'' के
सर्पपाश में है
जकड़ा आदमी
है कितना बुद्धि का लंगड़ा।
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3 comments:

  1. छोटा बड़ा तो सोच होता है

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  2. बहुत सुन्दर .....
    बिलकुल सही बात खूबसूरत तरीके से...
    कुँवर जी,

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  3. Bahut khoob sir.. Man ko bha gaye aapke words...

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