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Wednesday, May 9, 2012

प्रतीक्षारत मेरी आंखें

प्रतीक्षारत
मेरी आंखें
निहारती रहीं
तुम्‍हारे होंठो की ड़योढी के भीतर
कुलबुलाती मुस्‍कान को
जिसे पाकर
मेरा
आवारा प्रश्‍न
एक सही उत्‍तर लिख देता,
मगर-
तुमने
ओढ लिया मुंह तक अंधेरा
दफना कर उजेरा
तो फिर
मेरे लिए
मात्र
मूंग-से बिखरे
संदर्भों को चुनने का
विकल्‍प ।

3 comments:

  1. बहुत खूबसूरत प्रतीक्षारत आँखें... सुन्दर रचना... आभार

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    1. आपका पृष्‍ठ देखा बहुत ही सुन्‍दर लगा। आपके द्वारा लिखित अपने मन की बात को नया आयाम देने के लिए हमारा आशीर्वाद।

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