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Monday, May 28, 2012

भूल सुधार


हाय! मौका दिए बगैर

भूल सुधार का

लो, चले गए वर्ष।

हौसलों और तमन्‍नाओं का

दौडता था

नया खून रगों में

मुटि़ठयों में थे

फौलादी इरादे

विश्‍वास

परादर्शी दृगों में।

छिटक कर

टूट गए

आंखों के उत्‍कर्ष।

मिट़टी को उपजाऊ बनाने की

उम्‍मीद में

खुशहा फसल के

खाद बन गए

अनेक संकल्पों के सूर्य

देखते स्‍वप्‍न

सुनहरे कल के।

मगर, हाय!

अंकुर क्रांति के नहीं

उगा तो नागफनी अमर्ष।

फहरानी तो थी कीर्ति-पताकाएं

हर मील पर

गाड दिए खंजर

चीर गए सरे आम शील को

टीनापोली आचरण

बांच रहे गीता की जगह

सत्‍य कथा बालचर।

विद्यालय ...........?

अंधा कुंआ,

एक हांपता संघर्ष।

समय की रेत पर

छूटते पद-चिन्‍ह

फडफडाती ये तारीखें।

भूत की अनंत खोह में

अन्‍याय गूंगी घटनाओं-सी

दफन हो गईं

वर्तमान इतिहास की चीखें।

आखिर कब तक

करते रहेंगे

विचार विमर्श।

सौतेले बेटे-से

गांव पर

मंडराती चीलें

खजूर सी योजनाओं के

बौने विकास के

पांवों के नीचे

सूखी झीलें।

झंझावत

और

कागजी नाव के

संज्ञा-हीन निष्‍कर्ष।
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