विधवा इच्छाएं
सांप लिपटे है चन्दन क्या देखें।
आंसू भरे नयन से गगन क्या देखें।।
चेहरे पे चिपकी हैं उदासियां,
दरका हुआ मन, दर्पण क्या देखें।
सूरज ही जब हो तिमिर के घर रहन,
मुफ़लिसी में सहर की किरन क्या देखें।
फूल भी है, खुशबू भी सेज पे-
आंख लगती नहीं स्वप्न क्या देखें।
शेष रही सिर्फ विधवा इच्छाएं,
टूटे पड़े सुहाग, कंगन क्या देखें।
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चेहरे पे चिपकी हैं उदासियां,दरका हुआ मन, दर्पण क्या देखें।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिवक्ति.
अंतिम दो पक्तियों में गलत टाइपिंग किर्पया देख लें.