बूढ़े, लंगड़े,
बौंडे, खूंटे छोड़े
जर्दिया पान की पीक से
बदुआते
आदर्श-
दांत खिसियाते हैं;
धुंआती अफवाहें
सठियाये संशय
कीलते हैं
मेरी राहों को,
चुगल-खोर हवाओं की
फसफुसाहटें
नोंचती है
मेरे युवा मस्तिष्क को;
तब उदास निगाहों को
टांक देता हूँ
आश्वस्त होने को
तुम्हारे रेशमी-बालों पर
और
तुम्हारे होठों पर
उगते आस्था के फूल
प्रेरणा देते हैं
मुझे
विश्वास के देवदार पर
चढ़ने की
आकाश की ऊँचाइयों को
नापने की।
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