भेड़ें
मरुस्थल/रेत
की/भूख/प्यास
पीठ पर/लादे
कांधे पर लाठी धरे
हांकते
गढ़रिए के डर्र-डर्र
इशारों पर
पठारों/कंकरीले
मैदानों के पार
नपीची गरदनें किए
सूंघती/घास/पानी की
गंध को
चलती जाती है
रेवड़-दर-रेवड़
गरदनें झुकाए
धरती की नमकीनआग
चाटते
डंठलों को चबाते
जितने दूर चले जाते
हैं
उतनी ही दूर हाती
जाती है
उनसे
पानी/हरी घास की
तलाश
उनके मिमियाने/आपस
में सींग उलझाने से
कोई फर्क नहीं पड़ता
गड़रिए को
वह
किसी नेता की तरह
माईक पर ध्यान
आकर्षित करने की
मुद्रा में
लाठी की ठक्-ठक् कर
हांक लगा
भेड़ों को
बबूल की/गंजी छांव
तले
इकट्ठा कर लेता है
अपनी
भूख/प्यास के लिए
दुहाता है
दूध/भेड़ों का
बेच लेता है कसाई को
भेड़े
गड़रिए को
पीठ पर लदी/पोटली
पानी की छागल से
रोटी खाते/पानी पीते
ठंडी नज़रों
से/टुकर-टुकर देखती है
और
चुपचाप/अपनी नियति
पर
गरदनें लटकाए
जुकाली करती रहती है
कि
भेड़ पर कोई नहीं
छोड़ता
ऊन।