अरुणाई -उषा को
चारू मुस्कान के साथ
आंगन में उतरे
रश्मि-विहंग।
मेरे कमरे की खुली
खिड़की से आकर
दीवार पर लगे दर्पण में
अपने ही प्रतिबिम्ब से
चोंच लड़ाने लगी
चिड़िया।
पड़ौस की
दो पड़ौसिने
आपस में लगी उछालने
मन की कुण्ठाओं की
बासी-बुसी खिचड़ी !
ईश्वर !
यह कैसा दिन उगा?
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