पूजा के अक्षत, फूल-पात
सब कुछ
धार के संग बह गया,
डूब गए
आस-पास, घाट
बाढ़ थी गुजर गई
समय एक नदी है,
नाम-रिश्ते
सभी नाम के हैं,
बैठे, चले गए
निभाना ही तो त्रासदी है,
एक घरौंदा
बचपन, यौवन
बुढ़ापा का
बना और ढह गया
सतही
रेत में
मोती नहीं
सीपियां ही सीपियां हैं,
बहार
कुछ नहीं
पेड़-शाखाएं
फूल-पत्तियां हैं,
बाद बीतने के
रिक्तता का अर्थ
सूनी मांग के
हाशिए तक रह गया।
-----