हो गए ओझल, तुम्हारे चरण ।
भर गई चिकोटी निगोड़ी भोर,
भीग गई कजरारी नयन कोर,
पलकां में बन्द धीरज छूट गया,
सुधियों का सन्दर्भ टूट गया ।
फैंक किरण-शर
दिग्-दिगन्त से
दरक दिए सब, सपवनों के दर्पण,
दृष्टि-पन्थ से
हो गए ओझल, तुम्हारे चरण।
बिसर गए पूजा के नेम-नियम,
टूट गया चुप शब्दों का संयम,
कीलित मर्यादाएं हिल गईं,
छाल पपड़ाए घाव की छिल गई ।
बन्ध्या कोख
दूर कन्त से
तपन दे गए,
उषा के चन्दन-क्षण,
द़ष्टि पन्थ से
हो गए ओझल, तुम्हारे चरण।
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