खुशियों से ज्यादा ग़म
रूप थी, यौप भी, दिल न था उठा के नकाब जो देखा।
और ज्यादा चुभे कांटे, छू के टीनी गुलाब जो देखा।।
मौसम की बदगुमानी तो देखो, घाव फिर हरे हो गए,
कि फूल सूखे ही मिले, हमने खोल के किताब जो देखा।
बाद मुद्दत के नींद आई थी, यह तो किस्मत की बात है,
आंख कब लगती नहीं किसी तरह कल से ख्वाज जो देखा।
दोस्त भी थे, वफा भी थी और वे कुछ हम सफर भी साथ,
किनारा कर गए वो सभी, दर्द का सैलाब जो देखा।
करते रहे ता उम्र हम जिन्दगी और आंसुओं से सुलह,
खुशियों से ज्यादा ग़म मिले हमने उम्र का हिसाब जो देखा।
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